एकलव्य पर कहानी – Eklavya Story in Hindi

एकलव्य पर कहानी – Eklavya Story in Hindi : दोस्तों एकलव्य कि महानता से तो आप सभी परिचित होंगे, आज हम सुविचारकोश पर एक स्टोरी शेयर कर रहे हैं आशा करते हैं आपको अच्छी लगेगी और आपको Inspire और Motivate करेगी।

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एकलव्य पर कहानी

महाभारत में एकलव्य नाम का एक निर्धन बालक हुआ है, जो इतने अभाव में रहता था कि एक दिन अपनी मां से दूध मांगने पर उसे खरिया का सफेद घोल मिला और इसी को दूध मानकर उसने पिया था। वह बालक धनुर विद्या के प्रति गहरी रूचि रखता था| उसके जीवन का उदेश्य था एक महान धनुर्धर बनना। इस उदेश्य की पूर्ति के लिए उसने एक महान आचार्य से धनुर विद्या की शिक्षा लेने का अपना लक्ष्य बना लिया और वह गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में पहुंचा, लेकिन उन्होंने शिक्षा देने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वह शूद्र-पुत्र था।

यह जानकर एकलव्य बिल्कुल निराश नहीं हुआ, बल्कि उत्साहित होकर उसने अपना आत्मबल बढाया और अपनी गहरी रूचि के अनुकूल दुनिया का महान धनुर्धारी बनने का मन में द्रढ़ संकल्प करके वह जंगल में चला गया| उसने मिटटी से द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाई, उन्हें अपना गुरु मानकर प्रणाम किया और फिर धनुर विद्या के अभ्यास में एकाग्र-मन से जुट गया। सभी बाधाओं को पार करते हुए वह कुछ समय बाद इस विद्या में इतना निपुण हो गया कि एक दिन उसने एक साथ अपने सात बाणों से एक कुते का मुहं बांध दिया| वह कुता अर्जुन का था, जो गुरु द्रोणाचार्य का शिष्य था। अर्जुन एकलव्य की कौशल, चातुर्य, बुद्धि एवं निपुणता को देखकर स्तब्ध रह गया| उसने तुरंत आश्रम में जाकर अपने गुरु को यह आंखों देखा हाल सुना दिया| द्रोणाचार्य ने तत्काल उस बालक से मिलकर जब उसके गुरुदेव का नाम पूछा तो उसने उन्हीं की स्व-निर्मित मूर्ति उन्हें दिखाकर कहा- आप ही मेरे गुरुदेव हैं। उसी समय गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में उसके सीधे हाथ का अंगूठा मांगा और उसने सहर्ष ही अपना अंगूठा काटकर उन्हें भेंट कर दिया।


तो दोस्तों ये थी एकलव्य पर कहानी – Eklavya Story in Hindi, यह प्रसंग हमारे जीवन को सफल बनाने में बड़े महत्व का है, इस प्रसंग से हमको यह सीख मिलती है कि हम सकारात्मक सोच के साथ अपना जीवन-लक्ष्य तय कर सकते हैं और अपनी मनचाही सफलता प्राप्त कर सकते हैं| शुभकामनाएं!

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