बुरी आदतें शिक्षाप्रद कहानी – Moral Story on Bad Habits in Hindi : दोस्तों इस कहानी के माध्यम से आज हम आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं वो सन्देश जो आपके लिए वरदान साबित होगा।
बुरी आदतें शिक्षाप्रद कहानी
Moral Story on Bad Habits in Hindi
स्वामी विवेकानंद परम ज्ञानी थे। दूर-दूर से लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास आया करते थे। एक बार उनके पास एक युवक आया और उनसे बोला- मैं अपने व्यसन छोड़ना चाहता हूं। स्वामीजी ने पूछा तुम्हें कौन-कौन से व्यसन हैं? युवक बोला- मैं शराब पीता हूं, जुआ खेलता हूं, गांजे-चरस का शौकीन हूं और इनके अतिरिक्त कई व्यसन तो ऐसे हैं जिन्हें आपके सक्षम कहते हुए भी शर्म महसूस होती है। स्वामीजी ने कहा- जिन व्यसनों को कहते हुए भी शर्म महसूस होती है उन्हें करते हुए शर्म नहीं आती? आज से ही यह सब छोड़ दो। युवक बोला- एकदम कैसे छोड़ दूं? मैं इन सभी का इतना आदी हो गया हूं कि ये सब धीरे-धीरे ही छूटेगा। युवक की यह बात सुनकर स्वामीजी ने उसे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन की एक घटना सुनाई-
परमहंस के पास एक धनी युवक आया और उन्हें सहस्त्रों स्वर्ण मुद्राएं देने लगा। परमहंस तो वीतरागी थे। उन्होंने युवक का हाथ पकड़कर कहा-चल मेरे साथ और मेरे सामने ही इन्हें गंगाजी में फेंक दे। वे उस युवक को गंगा किनारे ले गए। युवक ने उनके कहे अनुसार स्वर्ण मुद्राएं गंगा में फेंकना आरंभ किया मगर उसके ह्रदय से लोभ पूर्णत: गया नहीं था, अत: वह गिन-गिनकर मुद्राएं फेंकता रहा। ऐसा करते-करते जब शाम हो गई तब शेष बची मुद्राओं के ढेर को परमहंस ने एक साथ गंगा में फेंक दिया और बोले-इन स्वर्ण मुद्राओं को एक साथ न फेंककर तुमने जिस तरह गिन-गिनकर फेंका, उससे दो बातें स्पष्ट हो गई-एक तो यह कि इन मुद्राओं से तुम्हें कितना अधिक लगाव था और दूसरा यह कि जहां तुम एक कदम उठाकर पहुंच सकते थे वहां पहुंचने के लिए तुमने व्यर्थ ही कई कदम उठाए। परमहंस की इस कथा के जरिये स्वामी विवेकानंद ने युवक को समझाया कि व्यसन छोड़ना है तो फिर धीरे-धीरे क्यों छोड़ना? जो गलत है उसे तत्काल छोड़ दो। विवेकानंद की बात युवक के ह्रदय में उतर गई और उसने तत्क्षण व्यसन छोड़ने का द्रढ़संकल्प कर लिया।
कहानी का सार
तो दोस्तों इस कहानी बुरी आदतें शिक्षाप्रद कहानी – Moral Story on Bad Habits in Hindi से ये निष्कर्ष निकलता है कि जो आदतें स्वयं के लिए और दूसरों के लिए हानिकारक हों उन्हें छोड़ने में क्षणमात्र की भी देर नहीं करनी चाहिए। देरी से संकल्प डगमगा सकता है।